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वेश्यावृत्ति के दलदल से निकलने को बेताब “पिंजरे की तितलियां”

समीक्षा:डॉ तबस्सुम जहां। पिछले बरस देश विदेश में 10 से ज़्यादा राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में अवार्ड अपने नाम कर चुकी फ़िल्म ‘पिंजरे की तितलियाँ’ अपने बोल्ड विषय को लेकर ख़ासी चर्चा बटोर रही...

चौथी सिगरेट – अभाव और क्रान्ति

लेख:- अनिल गोयल          पिछली शताब्दी के साठ-सत्तर-अस्सी के दशक भारतीय राजनीति में रोमांटिसिज्म के दशक थे.  पूँजीवाद… शोषण… समाजवाद… अस्मिता… आत्मसम्मान… ऐसे न जाने कितने ही अति-भावुकता भरे शब्द बीसवीं शताब्दी के उस...