Author: Anil Goel

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नाटक “बैजू बावरा”

समीक्षा — अनिल गोयल मराठी और बंगाली रंगमंच से आक्रान्त होने की सीमा तक प्रभावित रहे हिन्दी रंगमंच में कुछ चरित्र, विशेषकर भारतीय इतिहास, संस्कृति और धर्म से जुड़े हुए लोग किनारों पर ही...

आपदा-काल में भास का सहारा

‘आपदा को अवसर में बदलना’ – आजकल यह उक्ति प्रायः सुनने को मिल जाती है. आज के समय की जीवित स्मृति में सबसे बड़ी आपदा रही करोना. सब लोग अपने-अपने घरों के अन्दर बन्द...

गली दुल्हन वाली

गली दुल्हन वाली टिप्पणी — अनिल गोयल दिल्ली की रामलीला से अपने अभिनय-जीवन का प्रारम्भ करने वाले सुभाष गुप्ता 1975 में ‘नाटक पोलमपुर का’ में समरू जाट की भूमिका से ‘अभियान’ रंगसमूह से जुड़े....

मन के भँवर

मन के भँवर— अनिल गोयल हिन्दी में नाटकों की कमी का रोना रोते रहना हमारे रंगकर्मियों का प्रिय व्यसन है, जबकि हजारों नाटक हिन्दी में लिखे गये हैं. लगभग पाँच दशक पूर्व लिखी गई...

मिस्टर राईट

मिस्टर राईट— अनिल गोयल समुद्र-मन्थन के समय देवताओं और दानवों के बीच हुए संघर्ष के समय से ही अच्छे और बुरे के बीच के द्वंद्व को विभिन्न तरीकों से दिखाया जाता रहा है. राम...

सुख भरी नींद का सपना

सुख भरी नींद का सपना – एक नया बिदेसिया      — अनिल गोयल “हियाँ के गाँव और गाँवन के जैसे नईं लगत ऐं!” खिड़की के बाहर तेजी से भागते, पीछे छूटते मकानों, दुकानों, खलिहानों...

निर्जन कारावास

समीक्षक — अनिल गोयल हिन्दी में मूल नाटकों के अभाव की बात सदैव से कही जाती रही है. ऐसे में किसी नये नाटक का आना अवश्य ही स्वागत-योग्य कहा जायेगा! ‘जयवर्धन’ के नाम से...

हरियाणवी संस्कृति का एक नया अध्याय

लेखक – अनिल गोयल 1968 में बनी पहली फिल्म ‘धरती’ से होता हुआ हरियाणवी फिल्म उद्योग ‘चंद्रावल’ (1984) और ‘लाडो बसन्ती’ से होता हुआ आज ‘दादा लखमी चन्द’ तक आ पहुँचा है। इस बीच...

प्रेम रामायण

लेखक: अनिल गोयल महरषि वाल्मीकि की रामायण ने पिछले लगभग सात-आठ हजार वर्षों में कितने ही रूप धारे हैं. हर काल में वाल्मीकि–रचित इस महाकाव्य को हर कोई अपने तरीके से सुनाता चला आया...