‘दूर डगर पर’ और अन्य कविताएं
दूर डगर पर
दूर डगर पर बिछते जाते
डबडबाते दो नयन हैं
आओगे तुम कब न जाने
रातों करते न शयन हैं ।
मन का मृग था प्यासा प्यासा
आग की नदिया मिली
जल समझ के जल मरा
आस सब मिथ्या मिली
दृग के धोखे ले हैं डूबे
राख बनते सब सपन है ।
समर्पणों के मंत्र सारे
रट रट थके मेरे कंगना
वादों की सप्तपदी अपूर्ण
रुकी अधूरी मेरे अँगना
सिंदूर के बिन माँग प्रीत की
बिन आभूषण दुल्हन बदन है ।
तन प्रतीक्षा का है बेकल
बिन तेरे गुज़रते पलों में
प्राण प्रीत के अटक बैठे
कंटकी बिरहा वाले कंठ में
शूल वाले मौसमों में
भय के साये में सुमन है ।
डबडबाते दो नयन हैं ,,,,,
उमंग
झील किनारे
तुमने आना झील किनारे
जब से सनम है छोड़ दिया
ख़बर लग गई ये चन्दा को
उसने झील से नाता तोड़ लिया ।
तुम जब आतीं पानी मे डुबोतीं
पाँव महावर वाले अपने
लहरों की सरगम पे थिरकते
सप्तसुरों से सारे सपने
बहते पानी की वीणा के
तारों को किसने तोड़ दिया
तुमने आना झील किनारे,,,,
पा के फूलों सा संग तुम्हारा
महकते जाते थे शूल भी
चन्दन सी लगती थी तुम्हारे
पग के तले की धूल भी
तुम नहीं तो रहगुज़र से
बहारों ने मुख मोड़ लिया
तुमने आना झील किनारे,,
हवा अदब से बहती थी
ज़ुल्फ़ तेरी को छूने को
चाँद भी आतुर रहता था
रूप तुम्हारा निरखने को
अब तो सारे नज़ारों ने
बैराग से नाता जोड़ लिया
तुमने आना झील किनारे ,,
झूम के झील बल खा के बहती
कोई जाम ये नैन नशीले थे
पलकें तेरी जब झुक के उठती
न रुकते जज्बात हठीले थे
सारी यादों का मन को तुमने
तोहफा ये बेजोड़ दिया
तुमने आना झील किनारे ,,,
जीवन पथ
सुगमता और दुर्गमता का
जीवन पथ पर वास मिलेगा
पर सतत चलते रहने से ही
जीवन का आभास मिलेगा ।
सड़कों सड़कों धूप मिलेगी
किनारे अमलतास की छइयां
कभी मिलेंगे दुःखों के दोने
और कभी खुशियों की डलियाँ
दोनों को थामे पैर जमाना
सन्तुलन का अभ्यास मिलेगा ।
ऐसा जीना भी क्या जीना
स्पंदन करुणा का मन में न हो
आंखें तो सूखी ही रहेंगी
आद्रता जब मन घन में न हो
संवेदना जब मन में बसेगी
दृग को सावन मास मिलेगा ।
बैठ किनारे समंदर के
हाथ न कुछ भी आएगा
लहरों की गिनती कर कर के
शून्य ख़ुद रह जायेगा
गहरे पानी पैठ ही तुझे
कोई मोती सच्चा खास मिलेगा ।
उधार लेना तू गम किसी के
सिखाना किसी को मुस्काना
नफ़रतों से बचा कर दामन
गीत प्रीत के नित गाना
कोई पराया सा न लगेगा
अपनेपन का एहसास मिलेगा ।
उमंग
गुरु जिंदगी
जिंदगी जीना मुझे सिखा दे
बन जा गुरु इस जन्म की
राह सही बतला दे ।
बन जा,, ऊँ हंसी मैं पराये लब की
इबादत रब की बने
पोंछ सकूँ दुनिया के मैं
कपोल अश्रु से सने
हथेली ऐसी दिला दे
जीना मुझे,,,
चहुँ ओर पंक नफ़रतों का
उगा पंकज प्रेम पगे
वीणा मन की गुमसुम न रहे
नवसुर मधुर जगें
संगीत नया चला दे
जीना मुझे ,,,,
समय का चाक लम्हों की माटी
जिंदड़ी कुशल कुम्हार
प्रेम का अमृत अंक भरे
घट हो एक तैयार
चाक को ऐसे चला दे
जीना मुझे ,,,,
शतरंज का खेल ये दुनिया
वक़्त बिछा रहा बिसातें
कुटिल भाग्य शकुनि बन बैठा
देने को पल पल मातें
छल को पढ़ना सिखा दे
जीना मेरा होवे ऐसे
अमावस में जलता दीप
संवेदना बिन यूँ लगे मन
ज्यूँ मोती बिन सीप
स्वाति बूँद पिला दे
जीना मुझे ,,,
मन मे ग्रन्थों को सीखूं पढ़ना
ढाई आखर नित बांचूँ
परपीड़ा से नयन मेरे भीजे
नैन के बैन मैं समझूँ
विद्या अमोल सिखा दे
जीना मुझे ,,,े
उमंग
मील के पत्थर
मेरे घर के
पत्थर मील के हटा दिये हैं सारे अपनी राहों से
सवाल कोई भी शेष नही हैं हमको अपनी राहों से
हो चला था गुमान पैरों को चलते रहने मीलों का
निगाहें जिद कर माँगती थी अपनी मंज़िल का पता
मिटा दिया है टकराव मैंने पूरी और अधूरी चाहों से ।
चलते रहना सार जीवन का , बिन चले कुछ न सरे
राहों में मिल जाएं बहारें या पतझड़ गले आन लगे
अब मन को न वास्ता कोई , अपनी पराई पनाहों से
फ़ीके पड़ गए रंग चमकीले दुप्पटे मेरे रेशमके
छीज गए हैं वसन सखि री खा के कोड़े मौसम के
नया सा सब फिर बुनवा लेंगे मधुमासों के जुलाहों से
उमंग
जिंदगी की चक्की
ज़िंदगी की चक्की रखती न भेद भाव कौनो
इक से ही पिस रहे हैं ,देह और रूह दोनों ।
मीलों चला चला के दिन ने बहुत थकाया
रातों को सुकूँ मिलेगा कह कहके बहलाया
और रातों से नदारद चाँद और सितारे दोनों
इक से ही ,,,
कब छोड़ेगी परखना तू कसौटी नित नई पर
मुझे तोल न तू हरदम नई नई चुनौती दे कर
कभी धर तू नीचे अपने, बाट और तराज़ू दोनों
इक से ही ,,,,
प्रश्नों के कटघरे में मैं ताउम्र से खड़ा हूँ
जो किये गुनाह नहीं पा उनकी सज़ा रहा हूँ
कभी बोले न मेरे हक में ,मुंसिफ गवाह दोनों
इक से ही ,,,
उमंग
Thanks for honoring me by publishing my poems. This gives me encouragement. I am grateful to Mahoharji for considering me for this,
Umang Sarin