डॉ लईक हुसैन के निर्देश में साहिर लुधियानवी की नज़्म ‘परछाइयां’ की प्रस्तुति सारी सराहनाओं से ऊपर

Review By: Dr. Durga Prasad Agrwal
8 मार्च 1921 को लुधियाना में जन्मे साहिर लुधियानवी जितना अपने फ़िल्मी गीतों के लिए जाने जाते हैं उतना ही, या शायद उससे भी ज़्यादा अपनी ग़ैर फिल्मी रचनाओं के लिए भी जाने और सराहे जाते हैं. ‘परछाइयां’ उनकी एक लम्बी नज़्म है जिसे उर्दू साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण रचना माना जाता है. अली सरदार जाफ़री ने इस नज़्म को उर्दू अदब में एक खूबसूरत इज़ाफ़ा कहकर सराहा है. कविता में कहानी को समेटे हुए यह नज़्म अपनी बनावट और बुनावट में महाकाव्यात्मक है. नज़्म बहुत ही प्रभावशाली तरीके से युद्ध का विरोध करती है. हालांकि इसकी पृष्ठभूमि द्वितीय महायुद्ध की है, यह नज़्म आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. शायद उससे भी ज़्यादा. कालजयी रचना इसी को तो कहते हैं!
आज शाम जयपुर के राजस्थान इण्टरनेशनल सेण्टर के सभागार में इस नज़्म की बहुत कलात्मक और प्रभावशाली प्रस्तुति देखकर लौटा हूं और उलझन में हूं कि नज़्म को सराहूं या प्रस्तुति को! जैसा मैंने कहा, नज़्म तो महान है ही, डॉ लईक हुसैन के निर्देश में इसकी नृत्य नाटिका रूप में प्रस्तुति भी इतनी ही भव्य और प्रभावशाली थी. सुपरिचित गायक और संगीतकार डॉ प्रेम भण्डारी ने कोई चालीस बरस पहले इस नज़्म की मंचीय प्रस्तुति का सपना देखा था और जब इस सपने के साकार रूप को आज शाम मुझे देखने का मौका मिला तो मैंने महसूस किया कि कुछ चीज़ों का जादू ऐसा होता है कि उसकी सराहना के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं. डॉ भण्डारी की परिकल्पना को लईक हुसैन और उनके साथियों ने साकार किया और ख़ुद डॉ भण्डारी और उनके साथियों ने इस प्रस्तुति में संगीत के रंग भरे. पूरी नज़्म में बार-बार छंद परिवर्तन होता है और मैंने महसूस किया कि ऐसे हर परिवर्तन के समय डॉ भण्डारी का गाने का लहज़ा भी बदल रहा था. इतनी लम्बी नज़्म को इतने वैविध्य के साथ गाना नहीं, अदा करना कोई मामूली काम नहीं था, लेकिन मुझे खुशी है और गर्व भी कि मेरे बचपन के साथी डॉ भडारी ने यह करिश्मा कर दिखाया. साहिर के लफ़्ज़ों को उनकी दमदार आवाज़ में सुनना एक अलौकिक अनुभव था. असल में डॉ भण्डारी की आवाज़ में जब साहिर की अनेक बार पढ़ी हुई और लगभग याद हो चली इस नज़्म को सुन रहा था तो उसके कई नए अर्थ खुल रहे थे.
‘परछाइयां’ की यह प्रस्तुति सारी सराहनाओं से ऊपर वाली प्रस्तुति थी. जिन्होंने इसे देखा वे भाग्यशाली हैं और जिन्होंने नहीं देखा, उनसे यही अनुरोध है कि जब भी उन्हें इसे देखने का मौका मिले, उस मौके को लपक कर थाम लें. राजस्थान इण्टरनेशनल सेण्टर, लईक हुसैन, डॉ प्रेम भण्डारी और उनकी सारी टीम को बहुत बहुत बधाई, और हार्दिक आभार.
Excellent Review
परछाइयाँ व साहिर लुधियानवी की ग़ैर फिल्मी शायरी भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी फिल्मी गज़ल गीत, बहुत ख़ूबसूरत समीक्षा ।