अलविदा त्रिपुरारी शर्मा

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विदाई सूचक: हिमांशु बी. जोशी

नब्बे के दशक की शुरुवात में मैं जब दिल्ली आया था तो उस वक्त राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के वरिष्ठ अभिनेताओं श्रीवल्लभ व्यास जी और रवि खानविलकर जी की मदद से रंगमंडल के जो नाटक देखने को मिले उनमें काठ की गाड़ी और आधे अधूरे भी शामिल हैं। इन दोनों नाटकों ने मुझे अलग अलग तरह से मुतासिर किया था चाहे वो लेखन हो या निर्देशन या अभिनय और दोनों मेरे ज़ेहन में अब तक बने हुए हैं। फिर जब कीर्ति जैन जी के नाटक सुवर्णलता से एक लाइट डिजाइनर के तौर पर थोड़ा बहुत पहचान बनी तो रानावि में सबसे पहले जिस नाटक का लाइट डिज़ाइन करने के लिए मुझे तत्कालीन निर्देशक राम गोपाल बजाज जी ने बुलाया वो उन्हीं निर्देशक का नाटक था। नाटक का नाम था चेरी का बगीचा (चेरी ऑर्चर्ड) और उन निर्देशक का नाम था – त्रिपुरारी शर्मा। चेखव के चेरी ऑर्चर्ड को उन्होंने छात्रों के साथ बहुमुख स्पेस में बहुत ही कल्पनाशीलता से निर्देशित किया था। फिर दुबारा से एनएसडी टाई के लिए उनके द्वारा लिखे व निर्देशित किए नाटक हैलो टू माइसेल्फ के लिए भी लाइट डिजाइन करने का अवसर मिला। दोनों नाटक जहां निर्देशन के लिए जाने गए वहीं दोनों की लाइट डिजाइन की भी खूब चर्चा हुई। फिर उनके कई और नाटक देखे और रंगकर्मी के तौर उनके काम को समझा।

त्रिपुरारी जी मितभाषी तो थीं ही, अपने काम को मेहनत और लगन से करने के लिए भी जानी जाती थीं। निर्देशन और लेखन में उनका समान दखल था। अल्काज़ी और कारंथ जी के बाद की पीढ़ी के रंगकर्मियों में वो निसंदेह एक सशक्त हस्ताक्षर थीं। वो लगातार अपने काम से अपने छात्रों को प्रेरित करने वाली टीचर थीं। उनका असमय जाना बहुत ही दुखदाई है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी क्षोभ है कि उन्हें किसी भी तरह बचाया न जा सका। और अंत में यही बचता है नमन, अलविदा!
अलविदा त्रिपुरारी मैम।

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2 Responses

  1. Avatar Rajeev Raj says:

    शत शत नमन।
    🙏🏾🙏🏾🙏🏾

  2. Avatar Arun K Singh says:

    I haven’t seen such gentle, polite down to earth personality.
    I know Tripurari ma’am since 1992. Unke Ghar bhi jata tha. Unki maa unko pyar se Tripur bolti thi.
    AAP ko sadar NAMAN

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