अपने बेटों के अँधेरे जीवन में रंग भरते पिता का संघर्ष है फ़िल्म- रंगीली

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अपने बेटों के अँधेरे जीवन में रंग भरते पिता का संघर्ष है फ़िल्म- रंगीली

समीक्षा:
डॉ तबस्सुम जहां


अभी हाल ही मे स्टेज ऐप पर रिलीज़ फ़िल्म ‘रंगीली’ बहुत चर्चा मे रही। रंगीली शब्द आते ही हमारे मन मे अनेक रंग बिरंगे रंगो की छवि बनने लगती है। रंगो की एक भरी पूरी दुनिया। लेकिन एक ऐसे पिता जिनकी पत्नी के जाने के बाद उनके दोनों बेटो के जीवन से रंग ही ख़त्म हो जाएँ तो ऐसे पिता का जीवन भी भयंकर अंधकार मे घिर जाता है। ऐसे में एक पिता अपने बेटों के जीवन मे रंग भरने का हर संभव प्रयास करता है और अंत मे सफल होता हैं। इसके लिए वो क्या क्या जतन करते हैं और उनके बेटों के जीवन मे अँधेरा क्यों हो जाता है। कुछ ऐसे ही परिदृश्य मे रचा बुना गया है रंगीली फ़िल्म का ताना बाना।

रंगीली’ फ़िल्म ग़रीब पिता बने संदीप शर्मा के इर्द-गिर्द घूमती है।


कहते हैं जवान बेटे बुढ़ापे में पिता की लाठी बनते है लेकिन इस फ़िल्म में एक पिता के परिवार में उसके बेटों राम लक्ष्मण के साथ कुछ ऐसा हादसा हो जाता है कि उसे अपने दोनों बेटों की लाठी बनना पड़ता है। सिर्फ़ कुछ समय के लिए ही नहीं बल्कि आजीवन। पिता केवल लाठी ही नहीं बनता बल्कि उनके जीने का सहारा, उनका हौसला उनकी शक्ति बनता है। जिससे प्रेरणा लेकर उसके दोनों बेटे वो कार्य कर दिखाते हैं जिससे न केवल बाप का सिर सम्मान और गर्व से ऊँचा हो जाता है बल्कि समाज मे एक बेहतरीन सन्देश भी पहुँचता है। शायद यही संदेश इस फ़िल्म की मूल भावना भी है।

‘रंगीली’ फ़िल्म ग़रीब पिता बने संदीप शर्मा के इर्द-गिर्द घूमती है। जिनकी पत्नी गुज़र चुकी है और दो जवान बेटे राम लक्ष्मण उनके जीवन का आधार है। जिनके लिए वह जीते मरते है। एक लड़की की इज़्ज़त बचाते समय उनके दोनों बेटों के साथ एक भयंकर हादसा हो जाता है जिससे वह अंदर से बुरी तरह टूट कर भी उनके सामने मज़बूत बने रहते है। वह अकेले में भयंकर रुदन और चीत्कार करते है लेकिन किसी के सामने अपनी पीड़ा को सामने नहीं आने देते। एक गहरा अंधकार उनको घेर लेता है जिसे चीर कर वह बेटों के जीवन में रोशनी लाते है। एक पिता की बेबसी, लाचारी और संवेदनशीलता, मार्मिकता को संदीप शर्मा ने बहुत ही जीवंतता के साथ निभाया है। बेटों को सिखाना, उन्हें हँसाने के लिए कोशिश करना, अंत में पैराओलम्पिक में जाने के लिए हुई ट्रेनिंग आदि ऐसे अनेक दृश्य है जो भावुक कर जाते हैं।

रंगीली एक बहुत ही प्यारी, बहुत ही संवेदनशील, मार्मिक, पिता पुत्र के रिश्ते और उनकी भावनाओं को उकेरती फिल्म है जो स्टेज ऐप पर आई है। संदीप शर्मा के कुशल निर्देशन में बनी इस फिल्म के सभी पात्र एकदम वास्तविक से लगते हैं। इसमें एक गरीब मजदूर परिवार की व्यथा को उभारा गया है। किस प्रकार आगे चलकर यह परिवार संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों में अपना मुकाम बनाते हैं यह भी दिखाती है। फ़िल्म अपने पहले दृश्य से ही दर्शकों को बाँधती है। फ़िल्म के शुरु में अलग-अलग दिखाए दृश्य रोचकता और उत्सुकता को बढ़ाते हैं। फ़िल्म में एक रोमांच है जो अंत तक बना रहता है। अनेक कड़ियाँ है जो अंत में जब खुलती हैं तो दर्शक हक्के बक्के रह जाते हैं।

फिल्म में कहीं-कहीं लगा है कि तकनीकी पक्ष और अधिक मजबूत हो सकता था लेकिन सीमित संसाधनों में हरियाणा में जिस प्रकार से काम हो रहे हैं उस दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसे बेहद पुष्ट और सराहनीय कहा जा सकता है। चूंकि संदीप शर्मा बॉलीवुड में काम कर चुके हैं और हरियाणा में भी अच्छा और लगातार काम कर रहे हैं उनकी सतरंगी फिल्म काफी चर्चा में रही थी जिसे नेशनल अवार्ड भी मिला है और उसी श्रृंखला में वह आगे लगातार काम कर रहे हैं।
फिल्में में पात्रों के अभिनय की बात करें तो एक अच्छे कथानक के साथ उसके सभी पात्रों ने अपनी क्षमता के अनुसार अभिनय किया है।
सबसे ज्यादा और प्रभावित करने वाला अभिनय संदीप शर्मा का रहा है जो बेहद स्वाभाविक और वास्तविक कहा जा सकता है। एक लाचार पिता की संवेदनाओं को उन्होंने बहुत खूबसूरती से निभाया है यकीनन यह निर्देशन में जितना कमाल करते हैं उतना ही उन्होंने अभिनय में भी कमाल किया है और सबसे खास बात यह है कि वह हरेक बार अपने अभिनय से दर्शकों को और समीक्षकों को चौंका देते हैं। इस फिल्म में सबसे खास बात यह है कि पहली बार उनकी ‘गायकी’ भी सामने आई है यह स्वरूप अभी तक अनछुआ था और इस फिल्म के जरिए पहली बार दर्शकों के सामने आया है। गायकी के क्षेत्र में भी उन्होंने कमाल किया है।
कोच बने हरि ओम कौशिक अपने रोल के हिसाब से हरेक सांचे में ढल जाते हैं और अपनी जबरदस्त अभिनय क्षमता के साथ वह नित नए रूप में नजर आते हैं इससे पहले उन्होंने कांड 10 में रिपोर्टर बनकर दर्शकों की खूब वाह वाही लूटी थी।

अर्चना सुहासिनी अपने डॉक्टर के किरदार में एकदम परफेक्ट नजर आई हैं। जिस सहजता से उन्होंने अपना किरदार निभाया है और अभिनय के अनुरूप अपने किरदार में ढल गई है वह वाकई काबिले तारीफ है।
गायत्री कौशल इंस्पेक्टर की भूमिका को बहुत गरिमा पूर्ण तरीके से लेकर चली है एक पुलिसया रौब दाब, हाव भाव उनकी बॉडी लैंग्वेज से बखूबी झलकता है।
राम लक्ष्मण बने राहुल लड़वाल, रजत सोंगरा और पीड़ित लड़की मुस्कान ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया है। इस फ़िल्म के अन्य पात्र रामबीर आर्यन, राजकुमार धनखड़, नवीन, सुरेंद्र नरवाल, जयंत कटारिया,  आकाश अंदाज़ वी एम बैचेन, वीरू चौधरी, ईश्वर अशरी, अमीन बेरवाल, टाइगर बिश्नोई तथा कैलाश ने भी फ़िल्म में छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर फ़िल्म की कथा को आगे बढ़ाने में अपना पर्याप्त सहयोग किया है

फ़िल्म के तकनीकी पक्ष पर बात करें फ़िल्म के संवाद लिखे हैं डॉ वी एम बैचेन और संदीप शर्मा ने। कहानी पटकथा और निर्देशन है संदीप शर्मा का। फ़िल्म के गीत लिखे हैं कृष्ण भारद्वाज ने जिसे संगीत से सजाया है  हरेंद्र भारद्वाज ने। फ़िल्म का बेहतरीन छायाँकन राहुल गरासिया ने किया है और इसकी निर्माता हैं पूनम देसवाल शर्मा।
बेहतरीन संगीत और गीतों से सजी फ़िल्म अंत में सुःखद अंत के साथ समाप्त होती है और अंत में बहुत ही प्यारे “नेत्र दान महादान” का सामाजिक संदेश देती है

समीक्षा:
डॉ तबस्सुम जहां

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1 Response

  1. Avatar कृष्ण भारद्वाज says:

    बहुत बहुत शुक्रिया तबस्सुम जी

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