घर की बात’ वेबसीरीज़।

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समीक्षा तबस्सुम जहां

‘घर की बात’ वेबसीरीज़। भरपूर मनोरंजन के साथ हरियाणवी सिनेमा में पहली बार हरियाणवी अर्बन का पदार्पण।
डॉ तबस्सुम जहां

जब भी हम हरियाणवी फिल्मों या वेब सीरीज की बात करते हैं तो हमारे सामने सबसे पहले ग्रामीण कल्चर आँखों के सामने घूम जाता है गाँव खेत खलिहान, हुक्का, पगड़ी, खाप पंचायत आदि। लेकिन वर्तमान समय मे हरियाणवी संस्कृति के नाम पर केवल गाँव का चूल्हा चौका, गाय भैंस, पंचायत आदि दिखाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आधे से ज्यादा हरियाणा ऐसा भी है जो बेहद शिक्षित, संभ्रांत शहरी परिवेश मे बसा हुआ है पर सिनेमाई जगत में अक़्सर शहरी हरियाणा को अनदेखा कर दिया जाता है। शहरी यानी अर्बन हरियाणा को दिखाने का शुरूआती प्रयास डायरेक्टर आशीष नेहरा ने अपनी वेबसीरीज़ ‘घर की बात’ में बखूबी किया है। इस वेबसीरीज़ में पहली बार अर्बन हरियाणा की हाईप्रोफाइल सोसायटी के विभिन्न पहलुओं को दर्शकों के सामने रखा गया है। सबसे ख़ास बात यह कि ‘घर की बात’ अर्बन हरियाणवी सीरीज़ को हरियाणा के गुरुग्राम स्थित प्रोडक्शन हाउस रेन्वॉयर फिल्म्स ने बनाया है, जिसके कर्ता-धर्ता हितेश दुआ हैं, जो सुपवा से पासआउट हैं।
एक तरह से इसे डायरेक्टर आशीष नेहरा और क्रियेटर हितेश दुआ का एक नवीन प्रयोग कहा जा सकता है वो भी हास्य से भरपूर चार एपिसोड में आप परत दर परत इसके किरदारों और उनकी दुनिया से रूबरू होते हैं ।
वेबसीरीज़ ‘घर की बात’ का पहला दृश्य है घर में पूजा है दोनों ओर से मेहमान आने वाले हैं लेकिन कुछ भी व्यवस्थित नहीं है। हवन के दौरान परिवार में अनेक विसंगतियाँ पैदा होती है जिससे वेबसीरीज़ में हास्य का पुट पैदा होता है।
यह वेबसीरीज़ बताता है कि अगर आप ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं तो ज़िंदगी आपके लिए बहुत आसान और सरल है। वेबसीरीज़ में मीशो शॉपिंग एप की खासियत बता कर ऑनलाइन सुविधाओं के बारे में बताया गया है। स्टेज एप और मीशो मिलकर पहली बार दर्शकों के लिए कुछ नया पेश करने में कामयाब नजर आती आते हैं।
दूसरी ख़ास बात जो इस वेबसीरीज़ में दिखाई देती है कि अपने पूर्ववत सिनेमा से इतर इस वेबसीरीज़ में महिला आत्मसम्मान, महिला आर्थिक सशक्तिकरण और परिवार में महिला की भागीदारी और उसकी भूमिका को भी स्वीकार किया गया है। न केवल इसके पुरुष पात्र महिला दिवस की पार्टी देकर अपनी बीवीओ को ख़ुश करते हैं बल्कि इसमें नायक बने जे पी की बॉस एक महिला है जिसे निभाया है उर्वशी धीमन ने जो पहली बार परदे पर आई है मगर कमाल नजर आती है। योगा टीचर भी एक महिला ही बनी है अनाहीता अमानी सिंह जो सुपवा के निर्देशन विभाग से निकल अभिनय में अपनी छाप छोड़ती हैं ।
संदीप शर्मा अपनी ऑनलाइन होने वाली क्लास में भी महिला और घर में उसकी अहम भूमिका पर अपना लेक्चर देते हैं।
फ़िल्म में चूंकि नायक जे पी के माता पिता गाँव से और नायिका के शहर से हैं इसलिए एक जगह शहर बनाम गाँव पर तीखी चर्चा होती है। यह दृश्य फ़िल्म को बहुत रोचक बनाता है।
वेबसीरीज़ के अंत में सोसायटी में समधी बनाम समधी की रेस का आयोजन होता है। उसकी तैयारी के लिए दोनों ओर से अनेक उपक्रम किए जाते हैं इस रेस को गाँव बनाम शहर कहना ग़लत नहीं होगा लेकिन अंत में जीत न तो गाँव की होती है और न ही शहर की बल्कि इससे इतर दोनों ही ओर से रिश्ते और पारिवारिक मूल्य जीत जाते हैं। वेबसीरीज़ का यह बहुत प्यारा सा महत्वपूर्ण मैसेज अंत में डायरेक्टर आशीष नेहरा दर्शकों तक पहुँचाने में सफल हो गए हैं। अंत का दृश्य बहुत ही भावुक कर देता है।

फ़िल्म के पात्रों की बात करें तो नवीन ओहल्यान जी ने कमाल की एक्टिंग की है ह्यूमर क्रियेट करने में वो बहुत सफल रहे हैं। इनकी वाईफ़ बनी स्वीटी मलिक ने भी अपने किरदार के हिसाब से अच्छा काम किया है। संदीप शर्मा जी ने शिक्षित शहरी हरियाणवी किरदार में ज़बरदस्त अभिनय किया है। वेबसीरीज़ के अंत में उनका किरदार दर्शकों की तालियां बटोर ले जाता है। संदीप शर्मा की पत्नी बनी गायत्री कौशल ने फ़िल्म के किरदार के अनुसार जितना अभिनय किया है उसमें जान फूँक दी है। मोहित नैन और स्नेहा तोमर ने भी पति पत्नी का किरदार बखूबी निभाया है। इन मुख्य किरदारों के अलावा अनिल कुमार ढाढा जी के रूप में खूब गुदगुदाते हैं, विशाल कुमार ने दर्जी के रोल में प्रवासी पंछी का दर्द बताया और हास्य में व्यंग कमाल का दिया, जितेंद्र गौड़ ने पंडित के रोल में जो समा बांधा वाकई काबिलेतारीफ है , योगेश्वर सिंह और सतीश नांदल ने भी अच्छा काम किया है। कुल मिलाकर सभी छोटे बड़े कलाकारों ने अपने किरदार और अभिनय के साथ भरपूर न्याय किया है।

कहा जा सकता है की ‘घर की बात’ वेबसीरीज़ में कहानी और उसके विषय को बहुत ही हल्के फुल्के अंदाज़ में पेश किया गया है। फ़िल्म के आरम्भ में जितेंद्र गौड़ पंडित जी और नवीन ओहल्यान के संवाद दृश्य को रोचक बनाते हैं। संवाद विषय और पात्रों व उसके किरदारों के अनुरूप हैं। छोटे चुटिले संवादों से हास्य का पुट झलकता है। जिनमें पर्याप्त कसावट है। जितेंद्र राठी की कास्ट्यूम भी बेहद कमाल की है।
दक्षिणा में खड़ाऊ देते वक्त नवीन जी पंडित जी से कहते हैं – “यो तो है तू भगवान का दास, और पहनना चाहे एडीडास।” इस तरह के गुदगुदाने वाले चुटीले संवाद और कई सीन है जो आपको बांध कर रखते हैं
फोटोग्राफर शुभम सैनी ने वेबसीरीज़ में कमाल की फोटोग्राफी की है। आशीष नेहरा का निर्देशन लाजवाब है, यकीन नहीं होता पिंजरे की तितलियाँ जैसी गंभीर फिल्म बनाने वाले आशीष नेहरा एक ही घर में हँसी का गुलदस्ता यूँ सजाकर पेश करेंगे । कुल मिलाकर यह वेबसीरीज़ न केवल दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है अपितु अंत में एक बहुत प्यारा सा मैसेज भी देती है। इस लाजवाब वेबसीरीज़ के डायरेक्टर हैं आशीष नेहरा और क्रियेटर हैं हितेश दुआ।
हितेश दुआ ने एक जिम्मेवार क्रीऐटर के रूप में हरियाणा को उसकी पहली अर्बन सीरीज दे दी है और उम्मीद है आगे भविष्य में यह टीम नए नए प्रयोग करती नजर आएगी | इस वेबसीरीज को लिखा है निमित फोगाट ने और एडिट किया है हितेश दुआ और रोहित शर्मा ने , साउन्ड दिया है गौरव गिल ने |

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