Jaywardhan’s Play ‘Nirjan Karawas’ Launched

The play Nirjan Karawas, written by Jaywardhan, was launched on 2 March 2024 at 4:00 pm in Delhi.

JP Singh alias Jaiwardhan has received ‘Honorary Degree’ from Bharatendu Natya Academy, Lucknow. He is honored with the Akademi Award for the year 2007 for playwriting by Uttar Pradesh Sangeet Natak Akademi, Lucknow. He is an expert in acting, direction and lighting concept. He has written many famous plays, including ‘Urgent Meeting’, ‘Kissa Maujpur Ka’, ‘Kaalpurush’, ‘Hai! Handsome’, ‘Mayaram Ki Maya’, ‘Jhansi Ki Rani’, ‘Madhyaantar’, ‘Mastmoula’, ‘Daroga ji Chori Ho Gayi’, ‘Jaisa Tum Kaho’, ‘Akhir Ek Din’, ‘Karmaev Dharmah’, ‘Antataha ‘, ‘Gorakhdhandha’, ‘Gandhari’, ‘Khairatilal Ka Kursi Tantra’, ‘Paro’, ‘Ek Aur Meeting’ and ‘Babu Harishchand’. 15 plays written by him have been published, along with 6 of his children’s plays have also been published. He has also made an impressive drama adaptation of Munshi Premchand’s classic novel ‘Godaan’. Many of his plays have also been telecast on Doordarshan and All India Radio.

Padmashree Sh. Daya Prakash Sinha, Senior Dainik Jagran Journalist Shri Anant Vijay, Akhil Bharatiya Co-Treasurer Subodh Sharma, Senior playwright Sh. Pratap Sehgal, Senior Drama Critic Sh. Anil Goyal, Senior Theater Artist Sh. Avtar Sahni were the chief guests at the inauguration. Jaywardhan welcomed all the chief guests.  Pratap Sehgal, while praising his writing, was seen saying on some issues of the play that more pages of history could have been added to it. In response to this, Jaywardhan said that the play ‘Nirjan Karawas’ depicts the period of solitary confinement of Maharishi Aurobindo Ghosh, that is why only one incident has been discussed in detail in it, due to which the author focuses the attention of the readers on one place. All the chief guests said about his writing that just as he wrote comic plays, he also wrote on serious subjects, which touched the hearts of the readers. The special thing is that he is an actor as well as a director, so he writes the scenes of the story more beautifully. It was also said to him that despite being so busy, he is writing many plays, which are present in the library even today and the plays written by him are being played in every corner of India.

Senior Critic Sh. Diwan Singh Bajeli, Senior Writer Sh. Hari Suman Bisht, Senior Critic Sh. Sangam Pandey, Senior Drama Director Sh. Shyam Kumar, Senior Drama Director Vashishth Upadhyay, Senior Drama Director Sh. Bhupesh Joshi, Senior Drama Director Sh. Ravi Taneja etc. participated in the audience.




निर्जन कारावास

समीक्षक — अनिल गोयल

हिन्दी में मूल नाटकों के अभाव की बात सदैव से कही जाती रही है. ऐसे में किसी नये नाटक का आना अवश्य ही स्वागत-योग्य कहा जायेगा! ‘जयवर्धन’ के नाम से लिखने वाले जे.पी. सिंह का नया नाटक ‘निर्जन कारावास’ प्रसिद्ध क्रान्तिकारी, योगी, दार्शनिक और कवि महर्षि अरविन्द घोष के जीवन पर लिखा गया एक नाटक है. 1872 में कलकत्ता में जन्मे महर्षि अरविन्द का जीवन बहु-आयामी था – उन्होंने इंग्लैंड में आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने से लेकर बड़ौदा (अब वदोदरा) में एक प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, क्रान्तिकारी, पत्रकार, योगी, दार्शनिक और कवि तक की भी भूमिकाएँ निभाईं. उनके जीवन को एक नाटक में समो सकना असम्भव है. जयवर्धन का प्रस्तुत नाटक महर्षि अरविन्द के एक वर्ष के निर्जन कारावास वाले काल-खण्ड को प्रदर्शित करता है, जब उन्हें प्रसिद्ध अलीपुर बम काण्ड में गिरफ्तार किया गया था.

बड़ौदा में कुछ समय प्रशासनिक सेवा से जुड़े रहने के बाद अपने को वहाँ से मुक्त कर के वे बंगाल लौट आये थे. वहाँ अरविन्द घोष असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन से जुड़ गये, जिस काल में उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और भगिनी निवेदिता के साथ भी सम्पर्क स्थापित किया. वे बाहरी रूप से तो कांग्रेस की गतिविधियों से जुड़े, लेकिन उन्होंने अपने को गुप्त रूप से भूमिगत क्रान्तिकारी गतिविधियों से भी जोड़ लिया. क्रान्तिकारी गतिविधियों से युवाओं को जोड़ने के लिये उन्होंने युवाओं को युवा क्लब स्थापित करने को प्रेरित किया. इसके पहले, सन 1902 में बंगाल के सुप्रसिद्ध ‘अनुशीलन समिति’ क्रान्तिकारी समूह को स्थापित करने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी. वे देश भर में क्रान्तिकारियों को संगठित करने के लिए घूमते फिरे. उन्होंने बाघा जतिन और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर को भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने को प्रेरित किया

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अपनी इन गतिविधियों के कारण वे ब्रिटिश सरकार की निगाहों में आ गये. उनकी गतिविधियों को रोकने के लिये उन्हें अलीपुर बम काण्ड में गिरफ्तार कर लिया गया, जहाँ मुकदमा चलने के काल में उन्हें एक वर्ष तक ‘निर्जन कारावास’ में रखा गया. ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य था उन्हें फाँसी पर चढ़ाना; ब्रिटिश वाइसराय के सचिव की सोच थी कि अरविन्द घोष समस्त क्रान्तिकारी गतिविधियों के मस्तिष्क हैं, और वे अकेले ही क्रान्तिकारियों की पूरी सेना खड़ी करने में सक्षम हैं. परन्तु उनके विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण जुटा पाने में विफल रहने पर सरकार मुकदमा हार गई, और उसे अरविन्द घोष को छोड़ देने पर बाध्य होना पड़ा. कारा से बाहर आने पर उन्होंने अंग्रेजी में ‘कर्मयोगी’ और बंगाली में ‘धर्म’ नामक प्रकाशन प्रारम्भ किये. इस समय पर पहली बार उन्होंने अपने उत्तरपाड़ा व्याख्यान में अपने चिन्तन में अध्यात्मिक रुझान के आने के संकेत दिये. इसके बाद वे फ्रांसीसी आधिपत्य वाले क्षेत्र पांडिचेरी चले गये, लेकिन ब्रिटिश गुप्तचरों ने वहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा. इसके बाद क्रान्तिकारी गतिविधियों से सन्यास ले कर वे पूर्ण रूप से योगी बन गये.

जे.पी. सिंह ने अपने इस नये नाटक की पहली प्रस्तुति 5 दिसम्बर 2022 को दिल्ली के श्रीराम प्रेक्षागृह में दी. इस प्रस्तुति के लिये उन्हें भीलवाड़ा औद्योगिक समूह की ओर से सहयोग मिला. यह हर्ष का विषय है कि स्वतन्त्रता-संग्राम के जो चरित्र अब तक हिन्दी रंगमंच से नदारद थे, वे अब भारतीय जनता के समक्ष जीवित हो रहे हैं.
लेकिन जे.पी. सिंह के अरविन्द आध्यात्म में डूबे हुए अरविन्द हैं, उनकी उस समय की वास्तविकता से थोड़े दूर! यदि अरविन्द सचमुच आध्यात्म में इतने ही डूबे हुए थे, तो सरकार को उन्हें निर्जन कारावास में रखने की क्या आवश्यकता थी? तथ्य बताते हैं कि अलीपुर बम काण्ड के समय तक अरविन्द इतनी गहराई के साथ आध्यात्म की ओर को नहीं मुड़े थे. योग और प्राणायाम से तो वे काफी पहले जुड़ गये थे, कविता भी करने लगे थे. परन्तु बहुत गहराई के साथ आध्यात्म की सीढ़ियाँ चढ़ना उन्होंने अभी प्रारम्भ नहीं किया था. जेल में, प्रारम्भ में उन्हें घर के कपड़े पहनने, अपने पास किताबें रखने और कागज-कलम और दवात तक के प्रयोग की अनुमति भी नहीं थी, जिस की अनुमति उन्हें जेल में रहने के काल में काफी समय के बाद मिली थी. जेल में स्वामी विवेकानन्द की आत्मा दो माह तक उनसे मिलती रही, ऐसा उन्होंने बाद में एक पत्र में लिखा. लेकिन यह भी सत्य है, कि यदि जेल में ही सरकारी गवाह बन गये नरेन गोस्वामी की हत्या न कर दी गई होती, तो अरविन्द को आध्यात्म की ओर को मुड़ने का अवसर भी मिल पाता या नहीं! कांग्रेस में भी वे प्रारम्भ से ही गरम दल के साथ जुड़े थे, तिलक के साथ उनका सामीप्य यही सिद्ध करता है.

इसलिये, नाटक की प्रस्तुति में एक प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिक विश्लेषक, शिक्षक, क्रान्तिकारी, पत्रकार, योगी, दार्शनिक और कवि की उनकी भूमिकाओं को उभारना आवश्यक है. इससे इतने बड़े व्यक्तित्व वाले इस क्रान्तिकारी के चरित्र को एकांगीपन से बचा कर कर उसे उसकी बहु-आयामिता में प्रस्तुत करना सम्भव होगा, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है. अभी नाटक का पहला ही प्रदर्शन हुआ है. नाटक के अन्य प्रदर्शनों तथा इसके प्रकाशन के पूर्व जयवर्धन को इस विषय पर थोड़ा और गहराई के साथ शोध करके उनके निर्जन कारावास के समय की उनकी वास्तविक मनोस्थिति को उभारना होगा, तभी इस ऐतिहासिक चरित्र के साथ न्याय हो सकेगा. नाटक में रूप-सज्जा इत्यादि पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि साधारणजन के मन में महर्षि अरविन्द के चित्रों के माध्यम से उनकी एक छवि बनी हुई है, जिसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है. बाऊल संगीत का प्रयोग करके जे.पी. सिंह नाटक में संगीत-पक्ष का कुशलता से प्रयोग कर सके हैं. नाटक को वास्तविकता के समीप लाने के लिये, नाटक के प्रमुख चरित्र अरविन्द घोष के पात्र को निभाने वाले अभिनेता विपिन कुमार को भी अपने को एक बहुत ही विनयशील, सौम्य, धार्मिक पुरुष की छवि से निकाल कर एक अंग्रेजी वातावरण और ईसाई प्रभाव में पले-बढ़े क्रान्तिकारी, प्रशासक और पत्रकार के चरित्र में आना होगा, सदैव किसी सन्त की भांति भावहीन चेहरे से कहीं दूर क्षितिज की ओर को देखते रहने से बचने की आवश्यकता है.