‘सर सर सरला’ उर्फ ‘श्रंगार काण्ड’… मंच पर कविता
समीक्षा: अनिल गोयल
मंच पर कविता का मंचन लगभग बीस-बाईस वर्ष पूर्व देखा था, जब भोपाल से भारत रंग महोत्सव में आई विभा मिश्रा का नाटक ‘उनके हिस्से का प्रेम’ देखा था. मंच पर वही कविता एक बार फिर मंचित होती देखी, वशिष्ठ उपाध्याय के निर्देशन में मकरन्द देशपाण्डे के नाटक ‘सर सर सरला’ में, जिसे संजीव कान्त के रंगसमूह ‘कॉमन पीपुल’ ने ‘श्रृंगार काण्ड’ के नाम से 17 मार्च 2024 को प्रस्तुत किया. प्रस्तुति गुरुग्राम में महेश वशिष्ठ के ‘रूफटॉप’ प्रेक्षागृह ‘रंगपरिवर्तन’ में हुई. इस प्रकार के एक छोटे से, ‘इंटिमेट’ स्टूडियो प्रेक्षागृह में इस नाटक की सुन्दर प्रस्तुति ने अभिभूत कर दिया, कि कविता आज भी जीवित है! प्रकाश की सीमित उपलब्ध व्यवस्था के बीच, अभिनय के अतिरिक्त कोई उपकरण कलाकारों के पास नहीं बचता! और सभी कलाकारों ने उसका भरपूर उपयोग किया!
और मंच पर ही नहीं, कविता दर्शकों के बीच भी विराजमान रही, जहाँ नाटक के दौरान लगभग डेढ़ घंटे में मुझे एक बार भी कोई व्यक्ति मोबाइल पर सन्देश देखता हुआ तक भी नजर नहीं आया! इसे नाटक की प्रस्तुति के उत्कृष्ट होने के प्रमाण के रूप में भी लिया जा सकता है! और मुझे लगा, कि तीन पीढ़ियों को लेकर भी कोई परिवार वहाँ नाटक देखने आया हुआ था! यही चीजें रंगमंच के भविष्य के प्रति विश्वास जगाती हैं!
मंच पर प्रो. जी.पी. पालेकर के रूप में वशिष्ठ उपाध्याय, सरला के रूप में ज्योति उपाध्याय और फणीधर के रूप में तारा सिंह ने अद्भुत कसी हुई प्रस्तुति दे कर दर्शकों को हिलने भर का भी अवसर नहीं दिया! अपनी विद्यार्थी की अनुरक्ति से दिग्भ्रमित से प्रो. पालेकर (वशिष्ठ उपाध्याय), अपने आदर्श अध्यापक के प्रति रसीला अनुराग लिये सरल सी सरला (ज्योति उपाध्याय), और सरला की इस अनुरक्ति से परेशान फणीधर (तारा सिंह), जिसे सरला के एक अन्य साथी केशव के साथ विवाह के दंश को भी झेलना पड़ता है – इन चार पात्रों की इस चतुष्कोणीय प्रेम कथा मनुष्यों के बीच के सम्बन्धों की जटिलता के प्रश्न को बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत करती है, जिसमें मंच पर केशव कभी उपस्थित नहीं होता. वशिष्ठ उपाध्याय और ज्योति उपाध्याय ने बहुत कसे हुए तरीके से अपनी भूमिकाएँ निभाई हैं. लेकिन जिस तरीके से तारा सिंह ने एक झल्लाये हुए कुंठित प्रेमी की कठिन भूमिका को निभाया है, जिसमें एक ओर उसके प्रोफेसर हैं, दूसरी ओर वह लड़की है जिसे वह मन ही मन प्रेम करता है, और तीसरी ओर एक अन्य सहपाठी है, जिसके साथ सरला विवाह कर लेती है, वह दर्शनीय था!
‘कॉमन पीपुल’ की रजत जयन्ती के अवसर पर उन्होंने महेश वशिष्ठ और हरि कश्यप को सम्मानित किया. इस सम्मानित व्यक्तियों साथ मुझ अकिंचन को भी सम्मिलित करके उन्होंने अपनी श्रेष्ठता का ही परिचय दिया!