मिस्टर राईट

मिस्टर राईट
अनिल गोयल

समुद्र-मन्थन के समय देवताओं और दानवों के बीच हुए संघर्ष के समय से ही अच्छे और बुरे के बीच के द्वंद्व को विभिन्न तरीकों से दिखाया जाता रहा है. राम और रावण का संघर्ष हो या कृष्ण और कंस का, मनुष्य के मन की दैवीय और राक्षसी प्रवृत्तियों के बीच का यह संघर्ष सदैव से यूँ ही चलता आया है, और जब तक मनुष्य नाम का यह दो पैरों वाला प्राणी इस पृथ्वी पर है, यह संघर्ष यूँ ही चलता रहेगा.

26 मार्च को चाणक्यपुरी में नेपथ्य फाउंडेशन द्वारा माला कुमार के निर्देशन में नाटक ‘मिस्टर राईट’ मंचित किया गया. नाटक के लेखक मोहित चट्टोपाध्याय (चटर्जी) ने अपने इस नाटक में इस संघर्ष को एक नये ही तरीके से प्रस्तुत किया है. उन्होंने अपने इस नाटक में दिखाया है कि अच्छी और बुरी दोनों ही प्रवृत्तियाँ मनुष्य के अन्दर ही रहती हैं, जैसे कि हमारे दो हाथ हमारे साथ हमेशा रहते हैं, और बुरी प्रवृत्तियों से बचने के लिये मनुष्य को जीवन भर सतत प्रयास करते रहना होता है. नाटक में, एक दुर्घटना में रजत (संजीव जौहरी) की कार के नीचे आ कर उसके एक जानकार रुशेन की मृत्यु हो जाती है. रुशेन का विवाह तन्द्रा (सुनीता नारायण) से होने वाला था. तन्द्रा मानती है कि यह कोई दुर्घटना नहीं थी, बल्कि रजत ने जानबूझ कर रुशेन की हत्या की है. रजत उसे समझाने का प्रयास करता है, कि यह सचमुच एक दुर्घटना भर थी, और दुर्घटना के उस क्षण में उसका अपने दाहिने हाथ पर नियन्त्रण नहीं रहा था. स्वाभाविक रूप से, तन्द्रा उसकी बात का मजाक उड़ाती है. इस पर रजत, या फिर उसका नियन्त्रण से बाहर जा चुका उसका दाहिना हाथ तन्द्रा का गला घोटने लगता है, जिससे तन्द्रा बहुत कठिनाई से बच पाती है.

रजत अपनी इस समस्या से छुटकारा पाने के लिये एक पण्डित (प्रदीप कुकरेजा) को बुलाता है. पण्डित एक रक्षा-सूत्र उसके हाथ में बाँध कर चला जाता है, परन्तु उससे रजत की स्थिति में कुछ विशेष अन्तर नहीं पड़ता. रजत अपने डॉक्टर मित्र सिन्धु (प्रवीण कुमार) से इस बारे में बातचीत करता है, तो सिन्धु बताता है कि रजत को एक बहुत ही अनजानी सी बीमारी है, जिस में व्यक्ति का अपने शरीर के किसी अवयव पर से अधिकार समाप्त हो जाता है, और वह अवयव स्वतन्त्र रूप से काम करने लगता है. रजत को समझ आ जाता है, कि उसके मन के विकारों ने उसके दाहिने हाथ पर नियन्त्रण पा लिया है, और अब उसका दाहिना हाथ ‘मिस्टर राईट’ उसकी नहीं सुनेगा. इस बीच, एक अनजान युगल, बॉबी (कीमती आनन्द) और मिली (माला कुमार) उसके घर में शरण लेने के लिये आते हैं, तो भी रजत का ‘मिस्टर राईट’ मिली के साथ गलत हरकत करने का प्रयास करता है, लेकिन वे दोनों उसे ठग कर चले जाते हैं. इसके बाद रुशेन के भाई विमल बाबू (संजीव सलूजा) आकर रजत को बताते हैं, कि रुशेन मानसिक समस्या से ग्रस्त था. जब तन्द्रा को इस बात का पता चलता है, तो उसके मन की गलतफहमियाँ दूर हो जाती हैं. उसके मन में उठे सद्भावों से सशक्त हो कर धीरे-धीरे रजत अपने ‘मिस्टर राईट’ पर भी अपना अधिकार पुनः पाने में सफल होता है.

नाटक के ज्यादातर कलाकार दिल्ली के पुराने, बहुचर्चित और मंजे हुए कलाकार हैं, और एकदम कसा हुआ अभिनय करने के लिये जाने जाते हैं. इसी कारण, नाटक में सभी कलाकारों का अभिनय बहुत शक्तिशाली रहा. नाटक की निर्देशिका माला कुमार दूरदर्शन व रेडियो से लगातार जुड़ी रही हैं. अभियान रंगसमूह के साथ उन्होंने बहुत काम किया है, और पिछले लगभग 5-6 वर्षों से अपनी संस्था ‘नेपथ्य’ चला रही हैं. इस नाटक की मंच-सज्जा और कलाकारों के परिधान में भी एक सुरुचिपूर्ण, कलात्मक दृष्टि स्पष्ट नजर आती थी.

रजत की भूमिका निभाने वाले संजीव जौहरी अनेक प्रसिद्ध नाट्य –निर्देशकों के साथ काम कर चुके हैं. उन्होंने रंगमंच पर अपना पदार्पण 1989 में अभियान रंगसमूह के नाटक ‘चक्रव्यूह’ के साथ किया था. वे ‘अभियान’ के लिए ‘अंधी गली’, ‘मिस्टर राईट’ तथा ‘पंछी ऐसे आते हैं’ का निर्देशन कर चुके हैं. उन्होंने ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन के लीला आर्ट्स प्रोडक्शन के लिए भी ‘जात ही पूछो साधु की’, ‘पंछी ऐसे आते हैं’ तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाटक ‘राजा’ की संगीतमय प्रस्तुतियां दी हैं. ‘इल्हाम’ में सुभाष गुप्ता के निर्देशन में अभिनय करने के साथ-साथ और भी कितने ही नाटकों में अभिनय किया है. कीमती आनन्द का नाम तो दिल्ली के पुराने लोग बहुत अच्छे से जानते हैं…. दिल्ली में रंगमंच व दूरदर्शन के वे जाने-पहचाने कलाकार हैं. मॉडर्न स्कूल में पढ़े, और मॉडर्न स्कूल ओल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े रहे प्रदीप कुकरेजा भी दिल्ली रंगमंच का पुराना, जाना-पहचाना चेहरा हैं, जो रेडियो और दूरदर्शन पर अभिनय करते रहे हैं. सुनीता नारायण को संजीव जौहरी ने अभियान के लिये निर्देशित किये नाटक ‘अंधी गली’ में अभिनय के लिये लिया था. सिन्धु के रूप में प्रवीण कुमार, पत्रकार की भूमिका में अतिन रस्तोगी, और नौकर मंगल की भूमिका में आशीष अग्रवाल ने भी अपना मोहक अभिनय दे कर नाटक की सफलता में अपनी-अपनी भूमिका निभाई.