Ravindra Jadeja – All Rounder Top to Toe

Ravinder Jadeja – an asset to Indian Team by Sunil Sarpal

Ravinder Jadeja is considered as the most under-rated performer in Team India.  In fact, he is a 3-dimensional cricketer – a good batsman, a wicket taking left arm spinner and most importantly a sharp and agile fielder.  His throwing arm has done havoc in opposition camp and batsmen are always under a ‘fear psychosis’  whether or not to steal a single if the ball is hit in their direction.    

He is such a talented cricketer but creates an impression of being ordinary only because of not possessing good oratory skills. 

As a bowler, his slow left arm bowling is quiet effective and he creates lot of impact on helpful pitches.  His bowling style is restrictive type because he does not give much air to the ball.  His line and length do not allow batters to freeze arm and smash him for biggies.  He even spins the ball where no other bowler gets any purchase from the wicket.  

As a batsman, he is slotted down the order and invariably bats with lower down batsmen or bowlers.  Even while playing in English conditions where the ball swings viciously, and other batsmen are struggling to cope with swing, his approach to batting is as solid as a rock.   In such conditions, his contribution with the bat was significant to India total.  His batting technique may not be from the ‘cricketing book’ but his adjustment and leg side play is of proven quality.  

He is a very sharp fielder whether it is out-field or within 30-yard circle.  He has extra-ordinary diving skills and produce improbable catches.  His ability of stopping the ball and throwing in one action has made him a very dangerous fielder.  He sets such high benchmark in fielding which is hard to emulate. 

MS Dhoni had rightly given him the status of Sir Jadeja. 

Jadeja may not fall in the league of a Kohli or Rohit as batsman but his overall contribution to India’s cause should not be under-mined.  He has already played International cricket with distinction and does not throw away his wicket in a rush of blood, as was the case earlier. 

India needs the services of such cricketer for a long-long time to come as he is young and fit. 

In the commentary box, people like Sanjay Manjreker called him bits-and-pieces cricketer.  This is cheap commentary to distract the enthusiasm of a 3-dimensional cricketer.  His graph in terms of both batting and bowling is on the rise and eye-awakening.  There is a hint of ‘carelessness’ in his approach to the game but actually it is not the case.  He is as serious and studious as anybody else in the team. 




निर्जन कारावास

समीक्षक — अनिल गोयल

हिन्दी में मूल नाटकों के अभाव की बात सदैव से कही जाती रही है. ऐसे में किसी नये नाटक का आना अवश्य ही स्वागत-योग्य कहा जायेगा! ‘जयवर्धन’ के नाम से लिखने वाले जे.पी. सिंह का नया नाटक ‘निर्जन कारावास’ प्रसिद्ध क्रान्तिकारी, योगी, दार्शनिक और कवि महर्षि अरविन्द घोष के जीवन पर लिखा गया एक नाटक है. 1872 में कलकत्ता में जन्मे महर्षि अरविन्द का जीवन बहु-आयामी था – उन्होंने इंग्लैंड में आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने से लेकर बड़ौदा (अब वदोदरा) में एक प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, क्रान्तिकारी, पत्रकार, योगी, दार्शनिक और कवि तक की भी भूमिकाएँ निभाईं. उनके जीवन को एक नाटक में समो सकना असम्भव है. जयवर्धन का प्रस्तुत नाटक महर्षि अरविन्द के एक वर्ष के निर्जन कारावास वाले काल-खण्ड को प्रदर्शित करता है, जब उन्हें प्रसिद्ध अलीपुर बम काण्ड में गिरफ्तार किया गया था.

बड़ौदा में कुछ समय प्रशासनिक सेवा से जुड़े रहने के बाद अपने को वहाँ से मुक्त कर के वे बंगाल लौट आये थे. वहाँ अरविन्द घोष असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन से जुड़ गये, जिस काल में उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और भगिनी निवेदिता के साथ भी सम्पर्क स्थापित किया. वे बाहरी रूप से तो कांग्रेस की गतिविधियों से जुड़े, लेकिन उन्होंने अपने को गुप्त रूप से भूमिगत क्रान्तिकारी गतिविधियों से भी जोड़ लिया. क्रान्तिकारी गतिविधियों से युवाओं को जोड़ने के लिये उन्होंने युवाओं को युवा क्लब स्थापित करने को प्रेरित किया. इसके पहले, सन 1902 में बंगाल के सुप्रसिद्ध ‘अनुशीलन समिति’ क्रान्तिकारी समूह को स्थापित करने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी. वे देश भर में क्रान्तिकारियों को संगठित करने के लिए घूमते फिरे. उन्होंने बाघा जतिन और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर को भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने को प्रेरित किया

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अपनी इन गतिविधियों के कारण वे ब्रिटिश सरकार की निगाहों में आ गये. उनकी गतिविधियों को रोकने के लिये उन्हें अलीपुर बम काण्ड में गिरफ्तार कर लिया गया, जहाँ मुकदमा चलने के काल में उन्हें एक वर्ष तक ‘निर्जन कारावास’ में रखा गया. ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य था उन्हें फाँसी पर चढ़ाना; ब्रिटिश वाइसराय के सचिव की सोच थी कि अरविन्द घोष समस्त क्रान्तिकारी गतिविधियों के मस्तिष्क हैं, और वे अकेले ही क्रान्तिकारियों की पूरी सेना खड़ी करने में सक्षम हैं. परन्तु उनके विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण जुटा पाने में विफल रहने पर सरकार मुकदमा हार गई, और उसे अरविन्द घोष को छोड़ देने पर बाध्य होना पड़ा. कारा से बाहर आने पर उन्होंने अंग्रेजी में ‘कर्मयोगी’ और बंगाली में ‘धर्म’ नामक प्रकाशन प्रारम्भ किये. इस समय पर पहली बार उन्होंने अपने उत्तरपाड़ा व्याख्यान में अपने चिन्तन में अध्यात्मिक रुझान के आने के संकेत दिये. इसके बाद वे फ्रांसीसी आधिपत्य वाले क्षेत्र पांडिचेरी चले गये, लेकिन ब्रिटिश गुप्तचरों ने वहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा. इसके बाद क्रान्तिकारी गतिविधियों से सन्यास ले कर वे पूर्ण रूप से योगी बन गये.

जे.पी. सिंह ने अपने इस नये नाटक की पहली प्रस्तुति 5 दिसम्बर 2022 को दिल्ली के श्रीराम प्रेक्षागृह में दी. इस प्रस्तुति के लिये उन्हें भीलवाड़ा औद्योगिक समूह की ओर से सहयोग मिला. यह हर्ष का विषय है कि स्वतन्त्रता-संग्राम के जो चरित्र अब तक हिन्दी रंगमंच से नदारद थे, वे अब भारतीय जनता के समक्ष जीवित हो रहे हैं.
लेकिन जे.पी. सिंह के अरविन्द आध्यात्म में डूबे हुए अरविन्द हैं, उनकी उस समय की वास्तविकता से थोड़े दूर! यदि अरविन्द सचमुच आध्यात्म में इतने ही डूबे हुए थे, तो सरकार को उन्हें निर्जन कारावास में रखने की क्या आवश्यकता थी? तथ्य बताते हैं कि अलीपुर बम काण्ड के समय तक अरविन्द इतनी गहराई के साथ आध्यात्म की ओर को नहीं मुड़े थे. योग और प्राणायाम से तो वे काफी पहले जुड़ गये थे, कविता भी करने लगे थे. परन्तु बहुत गहराई के साथ आध्यात्म की सीढ़ियाँ चढ़ना उन्होंने अभी प्रारम्भ नहीं किया था. जेल में, प्रारम्भ में उन्हें घर के कपड़े पहनने, अपने पास किताबें रखने और कागज-कलम और दवात तक के प्रयोग की अनुमति भी नहीं थी, जिस की अनुमति उन्हें जेल में रहने के काल में काफी समय के बाद मिली थी. जेल में स्वामी विवेकानन्द की आत्मा दो माह तक उनसे मिलती रही, ऐसा उन्होंने बाद में एक पत्र में लिखा. लेकिन यह भी सत्य है, कि यदि जेल में ही सरकारी गवाह बन गये नरेन गोस्वामी की हत्या न कर दी गई होती, तो अरविन्द को आध्यात्म की ओर को मुड़ने का अवसर भी मिल पाता या नहीं! कांग्रेस में भी वे प्रारम्भ से ही गरम दल के साथ जुड़े थे, तिलक के साथ उनका सामीप्य यही सिद्ध करता है.

इसलिये, नाटक की प्रस्तुति में एक प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिक विश्लेषक, शिक्षक, क्रान्तिकारी, पत्रकार, योगी, दार्शनिक और कवि की उनकी भूमिकाओं को उभारना आवश्यक है. इससे इतने बड़े व्यक्तित्व वाले इस क्रान्तिकारी के चरित्र को एकांगीपन से बचा कर कर उसे उसकी बहु-आयामिता में प्रस्तुत करना सम्भव होगा, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है. अभी नाटक का पहला ही प्रदर्शन हुआ है. नाटक के अन्य प्रदर्शनों तथा इसके प्रकाशन के पूर्व जयवर्धन को इस विषय पर थोड़ा और गहराई के साथ शोध करके उनके निर्जन कारावास के समय की उनकी वास्तविक मनोस्थिति को उभारना होगा, तभी इस ऐतिहासिक चरित्र के साथ न्याय हो सकेगा. नाटक में रूप-सज्जा इत्यादि पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि साधारणजन के मन में महर्षि अरविन्द के चित्रों के माध्यम से उनकी एक छवि बनी हुई है, जिसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है. बाऊल संगीत का प्रयोग करके जे.पी. सिंह नाटक में संगीत-पक्ष का कुशलता से प्रयोग कर सके हैं. नाटक को वास्तविकता के समीप लाने के लिये, नाटक के प्रमुख चरित्र अरविन्द घोष के पात्र को निभाने वाले अभिनेता विपिन कुमार को भी अपने को एक बहुत ही विनयशील, सौम्य, धार्मिक पुरुष की छवि से निकाल कर एक अंग्रेजी वातावरण और ईसाई प्रभाव में पले-बढ़े क्रान्तिकारी, प्रशासक और पत्रकार के चरित्र में आना होगा, सदैव किसी सन्त की भांति भावहीन चेहरे से कहीं दूर क्षितिज की ओर को देखते रहने से बचने की आवश्यकता है.




Legendary Australian fast-bowler Brett Lee makes a prediction about an Indian player

by Sunil Sarpal

Brett Lee: Yep! He’s the one, SKY!

Legendary Australia fast-bowler Brett Lee believes an Indian in-form batsman will someday be a major factor in winning a World Cup for the Indian team. 2022 has been a year in which, through his 360-degree play and astonishing shots, became the toast of T20I cricket.

He is currently the highest run-getter in T20Is this year with 1,164 runs in 31 matches, averaging 46.56 and at a strike-rate of 187.43. He also lit up the Men’s T20 World Cup in Australia, the first time he’s played competitive cricket in the country. Surya Kumar Yadav amassed 239 runs in six innings at a strike rate of 189.68, often changing the tempo of the innings for India.

Surya Kumar Yadav: Where SKY is the limit

“SKY was one of the highlights for me at the T20 World Cup. He continues to bat with the same attitude. Not only will he score big runs but he will also someday win a World Cup for Team India. I love watching him play. My advice to SKY would be no advice. Keep doing what you are doing, don’t change, don’t complicate things, back yourself,” said Lee on his YouTube channel.

Just after T20 World Cup, Suryakumar enthralled cricket fans yet again when he smashed 111 not out off 51 balls against New Zealand at Bay Oval in Mount Maunganui. In that match, the rest of the visitors’ batters made 69 runs off as many balls and Suryakumar’s knock was called by Virat Kohli on Twitter as a “video game innings.”

“India did not win the T20 World Cup but the SKY rose. Of course, I am talking about Surya Kumar Yadav. He is the new global T20 superstar. What a sensational 12-15 months he has had on the big stage.”

“He has shown here on Australian grassy wickets where the ball skids through. His fearlessness and his shot selection are like that of a chess grandmaster. His execution is awe-inspiring and the smile on his face when he played it, is priceless,” added an impressed Lee.

On Yadav’s technique of playing shots which has made him stand out from other players, Lee stated that his basics of the game are sorted and wants Rahul Dravid and Rohit Sharma to let him shine in the coming years for India.

“I like the way he executes the impossible shots because his basics are in place. He doesn’t go out there and just tries to hit the ball that isn’t there to hit. He has a wonderful technique and he is definitely a player for the future.”

“You can trust Rahul Dravid and Rohit Sharma to just let him be the person he needs to be. SKY would rise and this could lead to many more peaks for India in years to come.”




‘दूर डगर पर’ और अन्य कविताएं

मन का मृग था प्यासा प्यासा

दूर डगर पर

दूर डगर पर बिछते जाते
डबडबाते दो नयन हैं
आओगे तुम कब न जाने
रातों करते न शयन हैं ।

मन का मृग था प्यासा प्यासा
आग की नदिया मिली
जल समझ के जल मरा
आस सब मिथ्या मिली
दृग के धोखे ले हैं डूबे
राख बनते सब सपन है ।

समर्पणों के मंत्र सारे
रट रट थके मेरे कंगना
वादों की सप्तपदी अपूर्ण
रुकी अधूरी मेरे अँगना
सिंदूर के बिन माँग प्रीत की
बिन आभूषण दुल्हन बदन है ।

तन प्रतीक्षा का है बेकल
बिन तेरे गुज़रते पलों में
प्राण प्रीत के अटक बैठे
कंटकी बिरहा वाले कंठ में
शूल वाले मौसमों में
भय के साये में सुमन है ।

डबडबाते दो नयन हैं ,,,,,

उमंग

झील किनारे

तुमने आना झील किनारे

जब से सनम है छोड़ दिया

ख़बर लग गई ये चन्दा को

उसने झील से नाता तोड़ लिया ।

तुम जब आतीं पानी मे डुबोतीं

पाँव महावर वाले अपने

लहरों की सरगम पे थिरकते

सप्तसुरों से सारे सपने

बहते पानी की वीणा के

तारों को किसने तोड़ दिया

तुमने आना झील किनारे,,,,

पा के फूलों सा संग तुम्हारा

महकते जाते थे शूल भी

चन्दन सी लगती थी तुम्हारे

पग के तले की धूल भी

तुम नहीं तो रहगुज़र से

बहारों ने मुख मोड़ लिया

तुमने आना झील किनारे,,

हवा अदब से बहती थी

ज़ुल्फ़ तेरी को छूने को

चाँद भी आतुर रहता था

रूप तुम्हारा निरखने को

अब तो सारे नज़ारों ने

बैराग से नाता जोड़ लिया

तुमने आना झील किनारे ,,

 झूम के झील बल खा के बहती

 कोई जाम ये नैन नशीले थे

 पलकें तेरी जब झुक के उठती

 न रुकते जज्बात हठीले थे

 सारी यादों का मन को तुमने

 तोहफा ये बेजोड़ दिया

 तुमने आना झील किनारे ,,,

जीवन पथ

सुगमता और दुर्गमता का

जीवन पथ पर वास मिलेगा

पर सतत चलते रहने से ही

जीवन का आभास मिलेगा ।

सड़कों सड़कों धूप मिलेगी

किनारे अमलतास की छइयां

कभी मिलेंगे दुःखों के दोने

और कभी खुशियों की डलियाँ

दोनों को थामे पैर जमाना

सन्तुलन का अभ्यास मिलेगा ।

ऐसा जीना भी क्या जीना

स्पंदन करुणा का मन में न हो

आंखें तो सूखी ही रहेंगी

आद्रता जब मन घन में न हो

संवेदना जब मन में बसेगी

दृग को  सावन मास मिलेगा ।

बैठ किनारे समंदर के

हाथ न कुछ भी आएगा

लहरों की गिनती कर कर के

शून्य ख़ुद रह जायेगा

गहरे पानी पैठ ही तुझे

कोई मोती सच्चा खास मिलेगा ।

उधार लेना तू गम किसी के

सिखाना किसी को मुस्काना

नफ़रतों से बचा कर दामन

गीत प्रीत के नित गाना

कोई पराया सा न लगेगा

अपनेपन का एहसास मिलेगा ।

उमंग

गुरु जिंदगी

जिंदगी जीना मुझे सिखा दे
बन जा गुरु इस जन्म की
राह सही बतला दे ।

बन जा,, ऊँ हंसी मैं पराये लब की
इबादत रब की बने
पोंछ सकूँ दुनिया के मैं
कपोल अश्रु से सने
हथेली ऐसी दिला दे
जीना मुझे,,,

चहुँ ओर पंक नफ़रतों का
उगा पंकज प्रेम पगे
वीणा मन की गुमसुम न रहे
नवसुर मधुर जगें
संगीत नया चला दे
जीना मुझे ,,,,

समय का चाक लम्हों की माटी
जिंदड़ी कुशल कुम्हार
प्रेम का अमृत अंक भरे
घट हो एक तैयार
चाक को ऐसे चला दे
जीना मुझे ,,,,

शतरंज का खेल ये दुनिया
वक़्त बिछा रहा बिसातें
कुटिल भाग्य शकुनि बन बैठा
देने को पल पल मातें
छल को पढ़ना सिखा दे

जीना मेरा होवे ऐसे
अमावस में जलता दीप
संवेदना बिन यूँ लगे मन
ज्यूँ मोती बिन सीप
स्वाति बूँद पिला दे
जीना मुझे ,,,

मन मे ग्रन्थों को सीखूं पढ़ना
ढाई आखर नित बांचूँ
परपीड़ा से नयन मेरे भीजे
नैन के बैन मैं समझूँ
विद्या अमोल सिखा दे
जीना मुझे ,,,े

उमंग

मील के पत्थर

मेरे घर के

पत्थर मील के हटा दिये हैं सारे अपनी राहों से
सवाल कोई भी शेष नही हैं हमको अपनी राहों से

हो चला था गुमान पैरों को चलते रहने मीलों का
निगाहें जिद कर माँगती थी अपनी मंज़िल का पता
मिटा दिया है टकराव मैंने पूरी और अधूरी चाहों से ।

चलते रहना सार जीवन का , बिन चले कुछ न सरे
राहों में मिल जाएं बहारें या पतझड़ गले आन लगे
अब मन को न वास्ता कोई , अपनी पराई पनाहों से

फ़ीके पड़ गए रंग चमकीले दुप्पटे मेरे रेशमके
छीज गए हैं वसन सखि री खा के कोड़े मौसम के
नया सा सब फिर बुनवा लेंगे मधुमासों के जुलाहों से

उमंग

जिंदगी की चक्की

ज़िंदगी की चक्की रखती न भेद भाव कौनो
इक से ही पिस रहे हैं ,देह और रूह दोनों ।

मीलों चला चला के दिन ने बहुत थकाया
रातों को सुकूँ मिलेगा कह कहके बहलाया
और रातों से नदारद चाँद और सितारे दोनों
इक से ही ,,,

कब छोड़ेगी परखना तू कसौटी नित नई पर
मुझे तोल न तू हरदम नई नई चुनौती दे कर
कभी धर तू नीचे अपने, बाट और तराज़ू दोनों
इक से ही ,,,,

प्रश्नों के कटघरे में मैं ताउम्र से खड़ा हूँ
जो किये गुनाह नहीं पा उनकी सज़ा रहा हूँ
कभी बोले न मेरे हक में ,मुंसिफ गवाह दोनों
इक से ही ,,,

उमंग